नाग पंचमी श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है. वर्ष 2012 में यह 23 जुलाई के दिन मनाया जायेगा. यह श्रद्धा व विश्वास का पर्व है. इस दिन नागों को धारण करने वाले भगवान भोलेनाथ की पूजा आराधना करने का विशेष विधान है.
शास्त्रों के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता है. श्रवण मास में नाग पंचमी होने के कारण इस मास में धरती खोदने का कार्य नहीं किया जाता है. श्रवण मास के विषय मेम यह मान्यता है कि इस माह में भूमि में हल नहीं चलाना चाहिए, नीवं नहीं खोदनी चाहिए. इस अवधि में भूमि के अंदर नाग देवता का विश्राम कर रहे होते है. भूमि के खोदने से नाग देव को कष्ट होने की संभावना रहती है.
देश के कई भागों में श्रावण मास की कृ्ष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को भी नाग पंचमी मनाई जाती है. नाग पंचमी में व्रत उपवास करने से नाग देवता प्रसन्न होते है. इस व्रत में पूरे दिन उपवास रख कर सूर्य अस्त होने के बाद नाग देवता की पूजा के लिये प्रसाद में खीर मनाई जाती है. खीर का भोग सबसे पहले नाग देवता को लगाया जाता है.
अथवा भगवान शिव को भोग लगाया जाता है. इसके बाद इस खीर को प्रसाद के रुप में सभी लोग ग्रहण करते है. इस उपवास में नम व तली हुई चीजों को ग्रहण करना वर्जित माना जाता है. उपवास रखने वाले व्यक्ति को उपवास के नियमों का पालन करना चाहिए.
नाग पंचमी के दिन उपवासक अपने घर की दहलीज के दोनों और गोबर से पांच सिर वाले नाग की आकृति बनाते है. गोबर न मिलने पर गेरु का प्रयोग भी किया जा सकता है. इसके बाद दुध, दुर्वा, कुशा, गंध, फूल, अक्षत, लड्डूओं से नाग देवता की पूजा कि जाती है. तथा नाग स्त्रोत या निम्न मंत्र का जाप किया जाता है.
” ऊँ कुरुकुल्ये हुँ फट स्वाहा”
इस मंत्र की तीन माला जप करने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं. नाग देवता को चंदन की सुगंध विशेष प्रिय होती है. इसलिये पूजा में चंदन का प्रयोग करना चाहिए. इस दिन की पूजा में सफेद कमल का प्रयोग किया जाता है. उपरोक्त मंत्र का जाप करने से “कालसर्प योग’ के अशुभ प्रभाव में कमी आती है यानी कालसर्प योग की शान्ति होती है.